Gopal chalisa in hindi pdf- गोपाल चालीसा

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Gopal chalisa in hindi pdf- गोपाल चालीसा

Gopal Chalisa -परिचय

सनातन धर्म में गोपाल चालीसा का पाठ भगवान श्री कृष्ण एवं उनके बालस्वरुप को समर्पित है। गोपाल चालीसा का पाठ भक्त भगवान श्री कृष्ण के नटखट बालस्वरूप जैसी संतान प्राप्ती के लिए करते है, ताकी उनकी संतान भी श्री कृष्ण जैसी पराक्रमी एवं सभी कलाओं में महारथी हो। गोपाल चालीसा का पाठ भक्त अपने घर पर विराजमान लड्डू गोपाल जी की पूजा-अर्चना करने में भी करते है। ऐसा माना भी जाता है, जो भी भक्त लड्डू गोपाल जी को घर पर स्थापित करके उनकी प्राण प्रतिष्ठा करके उनकी पूजा करते है, लड्डू गोपाल जी उन भक्तों की हर मनोकामना को पूर्ण करते है। गोपाल चालीसा में भगवन श्री कृष्ण के बाल स्वरुप में किए गए पराक्रमों एवं बाल लीलाओं को समर्पित है। गोपाल चालीसा में वर्णन है की, किस तरह भगवान श्री कृष्ण ने बचपन में राक्षसी पूतना का वध करकर उसका उद्धार किया। गोपाल चालीसा के एक और छंद में भगवान कृष्ण की लीला का वर्णन है, जब भगवान श्री कृष्ण बचपन में माटी खाते है, तब उनकी माता यशोगदा उनसे मुँह खोलने को कहती है, जब भगवान मुँह खोलकर माता यशोदा को दिखाते है, तो माता को उसमे समस्त ब्रह्माण्ड की छवी दिखती है। ऐसे ही कई बाल लीला रचकर भगवान श्री कृष्ण ने अपने भक्तों को बड़े-बड़े संकटों से बचाया है।

भगवान श्री कृष्ण की जन्म कथा

भगवान श्री कृष्ण का जनम द्वापर युग में काल कोठरी में हुआ था, उनके मामा कंस ने उनकी माता देवकी और पिता वासुदेव जी को बंधक बना लिया था। कंस बहुत ही दुराचारी था, उसने पृथ्वी में आतंक मचाया हुआ था। एक दिन उसके लिए एक आकाशवाणी हुई की माता देवकी और पिता वासुदेव की आठवीं संतान उसकी मृत्यु का कारण बनेगा। यह सुनके उसने माता देवकी और पिता वासुदेव जी को बंधक बना लिया, और उन्हें काल कोठरी में कैद कर दिया। इसके बाद कंस ने लगातार माता देवकी की सात संतानों का बल पूर्वक वध कर दिया। जब आठवीं संतान का जन्म भगवान श्री कृष्ण के रूप में होता है, तो कंस उन्हें भी मारने के लिए जाता है। लेकिन तब तक वासुदेव जी भगवान श्री कृष्ण को नंद गांव में नंद बाबा और माता यसोदा के यहां छोड़ आते है, और वहां से उनकी पुत्री को लेकर आ जाते है। जब कंस उनकी पुत्री को मरने के लिए जैसीआगे बढ़ता तभी आकाशवाणी होती है, हे पापी तुझे मुझे मार के क्या मिलेगा, तुझे मारने वाला वृन्दावन में पैदा हो गया है। इतना बोलकर वह बच्ची गायब हो जाती है। कंस को जब यह बात का पता चलता है तो वह पूतना नमक राक्षशी को नंद गांव भेजकर उस समय पैदा हुए सभी शिशुओं को मारने का आदेश दे दिया। किन्तु जब पूतना भगवान श्री कृष्ण को शिशु समझकर अपना दूध पिलाकर मारने की कोशिश करती है, तभी भगवान श्री कृष्ण उसका वध करकर उसका उद्धार कर देते हैं। कई सालों बाद जब भगवान श्री कृष्ण बड़े हो जाते है, तब वह वापस मथुरा जाकर कंस का वध करके अपने माता पिता को उसके कारागार से मुक्त करा देते है।

पढ़िए बाबा खाटू श्याम जी के बारे में।

Gopal Chalisa in Hindi

|| श्री गोपाल चालीसा ||

| | दोहा | |
श्री राधापद कमल रज, सिर धरि यमुना कूल |
वरणो चालीसा सरस, सकल सुमंगल मूल | |

| | चौपाई | |

जय जय पूरण ब्रह्म बिहारी, दुष्ट दलन लीला अवतारी |
जो कोई तुम्हरी लीला गावै, बिन श्रम सकल पदारथ पावै |

श्री वसुदेव देवकी माता, प्रकट भये संग हलधर भ्राता |
मथुरा सों प्रभु गोकुल आये, नन्द भवन मे बजत बधाये |

जो विष देन पूतना आई, सो मुक्ति दै धाम पठाई |
तृणावर्त राक्षस संहारयौ, पग बढ़ाय सकटासुर मार्यौ |

खेल खेल में माटी खाई, मुख मे सब जग दियो दिखाई |
गोपिन घर घर माखन खायो, जसुमति बाल केलि सुख पायो |

ऊखल सों निज अंग बँधाई, यमलार्जुन जड़ योनि छुड़ाई |
बका असुर की चोंच विदारी, विकट अघासुर दियो सँहारी |

ब्रह्मा बालक वत्स चुराये, मोहन को मोहन हित आये |
बाल वत्स सब बने मुरारी, ब्रह्मा विनय करी तब भारी |

काली नाग नाथि भगवाना, दावानल को कीन्हों पाना |
सखन संग खेलत सुख पायो, श्रीदामा निज कन्ध चढ़ायो |

चीर हरन करि सीख सिखाई, नख पर गिरवर लियो उठाई |
दरश यज्ञ पत्निन को दीन्हों, राधा प्रेम सुधा सुख लीन्हों |

नन्दहिं वरुण लोक सों लाये, ग्वालन को निज लोक दिखाये |
शरद चन्द्र लखि वेणु बजाई, अति सुख दीन्हों रास रचाई |

अजगर सों पितु चरण छुड़ायो, शंखचूड़ को मूड़ गिरायो |
हने अरिष्टा सुर अरु केशी, व्योमासुर मार्यो छल वेषी |

व्याकुल ब्रज तजि मथुरा आये, मारि कंस यदुवंश बसाये |
मात पिता की बन्दि छुड़ाई, सान्दीपन गृह विघा पाई |

पुनि पठयौ ब्रज ऊधौ ज्ञानी, पे्रम देखि सुधि सकल भुलानी |
कीन्हीं कुबरी सुन्दर नारी, हरि लाये रुक्मिणि सुकुमारी |

भौमासुर हनि भक्त छुड़ाये, सुरन जीति सुरतरु महि लाये |
दन्तवक्र शिशुपाल संहारे, खग मृग नृग अरु बधिक उधारे |

दीन सुदामा धनपति कीन्हों, पारथ रथ सारथि यश लीन्हों |
गीता ज्ञान सिखावन हारे, अर्जुन मोह मिटावन हारे |

केला भक्त बिदुर घर पायो, युद्ध महाभारत रचवायो |
द्रुपद सुता को चीर बढ़ायो, गर्भ परीक्षित जरत बचायो |

कच्छ मच्छ वाराह अहीशा, बावन कल्की बुद्धि मुनीशा |
ह्वै नृसिंह प्रह्लाद उबार्यो, राम रुप धरि रावण मार्यो |

जय मधु कैटभ दैत्य हनैया, अम्बरीय प्रिय चक्र धरैया |
ब्याध अजामिल दीन्हें तारी, शबरी अरु गणिका सी नारी |

गरुड़ासन गज फन्द निकन्दन, देहु दरश धु्रव नयनानन्दन |
देहु शुद्ध सन्तन कर सग्ड़ा, बाढ़ै प्रेम भक्ति रस रग्ड़ा |

देहु दिव्य वृन्दावन बासा, छूटै मृग तृष्णा जग आशा |
तुम्हरो ध्यान धरत शिव नारद, शुक सनकादिक ब्रह्म विशारद |

जय जय राधारमण कृपाला, हरण सकल संकट भ्रम जाला |
बिनसैं बिघन रोग दुःख भारी, जो सुमरैं जगपति गिरधारी |

जो सत बार पढ़ै चालीसा, देहि सकल बाँछित फल शीशा |

| | छन्द | |

गोपाल चालीसा पढ़ै नित, नेम सों चित्त लावई |
सो दिव्य तन धरि अन्त महँ, गोलोक धाम सिधावई | |

संसार सुख सम्पत्ति सकल, जो भक्तजन सन महँ चहैं |
ट्टजयरामदेवसदैव सो, गुरुदेव दाया सों लहैं | |

| | दोहा | |

प्रणत पाल अशरण शरण, करुणासिन्धु ब्रजेश |
चालीसा के संग मोहि, अपनावहु प्राणेश | |

 

 

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