Gayatri Chalisa in Hindi pdf-गायत्री चालीसा

gayatri Chalisa

Gayatri chalisa- परिचय

गायत्री चालीसा एक प्रतिष्ठित हिंदू भक्ति पाठ है जिसमें देवी गायत्री को समर्पित चालीस छंद शामिल हैं। वैदिक साहित्य में सबसे शक्तिशाली मंत्रों में से एक माना जाने वाला गायत्री मंत्र इस चालीसा का एक मूलभूत घटक है। चालीसा भक्ति और ध्यान के सार को समाहित करती है, देवी गायत्री को दिव्य ज्ञान, ज्ञान और आत्मज्ञान के अवतार के रूप में प्रतिष्ठित करती है।

प्राचीन भारतीय ग्रंथों में गहराई से निहित होने के साथ, गायत्री चालीसा एक महत्वपूर्ण भक्ति भजन है जिसे आध्यात्मिक उत्थान और आंतरिक जागृति चाहने वाले लाखों भक्तों द्वारा गाया जाता है। चालीसा के छंद ब्रह्मांडीय ऊर्जा से जुड़ने, शुद्ध मन के लिए आशीर्वाद मांगने और धार्मिकता और सच्चाई से भरपूर जीवन के लिए प्रयास करने के महत्व पर जोर देते हैं।

भक्तों का मानना ​​है कि गायत्री चालीसा का नियमित पाठ दिव्य आशीर्वाद प्रदान करता है, अंधकार और अज्ञान को दूर करता है और व्यक्ति को आत्म-साक्षात्कार की ओर ले जाता है। चालीसा के छंद कृतज्ञता और विनम्रता की भावना पैदा करते हैं, जो व्यक्तियों को अपनी चेतना की गहराई में जाने और देवी के प्रतीक ज्ञान के प्रकाश को अपनाने के लिए आमंत्रित करते हैं।

इस आधुनिक युग में, गायत्री चालीसा अत्यधिक प्रासंगिक बनी हुई है, जो साधकों को उनकी आध्यात्मिक यात्राओं के लिए प्रेरित करती है और ब्रह्मांड के साथ एकता की गहरी भावना को बढ़ावा देती है। इसका कालातीत ज्ञान और भक्ति गायत्री चालीसा को आध्यात्मिक अंतर्दृष्टि और संबंध का एक स्थायी प्रतीक बनाती है।

 

हिन्दू संस्कृति सम्बंधित पंक्तियाँ:

हिन्दू संस्कृति में, माँ गायत्री को सरस्वती, पर्वत गिरिराज हिमालय, और महेश के साथ जोड़ा जाता है। ‘Gayatri Chalisa’ में इन संस्कृति सम्बंधित पंक्तियों का प्रयोग किया गया है, जो माँ गायत्री की महिमा को निमंत्रण करती हैं।

पर्वत सम्बंधित पंक्ति:

‘Gayatri Chalisa’ में, “पर्वत-सुन्दर-महेश” पंक्ति माँ गायत्री के समर्पण के साथ होती है। इस पंक्ति में, माँ गायत्री को पर्वत से जोड़ा जाता है, जो हिन्दू संस्कृति में पुरुष-प्रकृति के प्रतीक के रूप में मान्यता प्राप्त है। इस पंक्ति में, माँ गायत्री की सुंदरता, शक्ति, और प्रकृति के साथ जुड़ाव दिखाया गया है।

गायत्री चालीसा में किस पर्वत से संबंधित पंक्ति है, और इसका महत्व क्या है?

‘Gayatri Chalisa’ में “पर्वत-सुन्दर-महेश” पंक्ति माँ गायत्री के समर्पण के साथ होती है। इस पंक्ति में, माँ गायत्री को पर्वत से जोड़ा जाता है, जो हिन्दू संस्कृति में पुरुष-प्रकृति के प्रतीक के रूप में मान्यता प्राप्त है। इस पंक्ति में, माँ गायत्री की सुंदरता, शक्ति, और प्रकृति के साथ जुड़ाव दिखाया गया है।

‘महेश’ से संबंधित पंक्ति ‘Gayatri Chalisa’ में कहाँ पर मिलती है?

‘Gayatri Chalisa’ में “महेश-सुन्दर” पंक्ति माँ गायत्री के समर्पण के साथ होती है। इस पंक्ति में, माँ गायत्री को महेश (Lord Shiv) से जोड़ा जाता है, जो हिन्दू संस्कृति में प्रमुख देवता के रूप में मान्यता प्राप्त हैं। ‘महेश-सुन्दर’ पंक्ति में, माँ गायत्री की शक्ति, सुंदरता, और प्रमुखता का वर्णन किया गया है।

‘Gayatri Chalisa’ में 40 पंक्तियों के समुह को ‘Chalisa’ कहते है, क्‍या आप जानते हैं कि इसमें संख्या 40 का क्‍या महत्व है?

हिन्दू संस्कृति प्राथमिकताएं में, संख्या 40 को महत्वपूर्ण माना जाता है। ‘Gayatri Chalisa’ में 40 पंक्तियों के समुह को ‘Chalisa’ कहते है, जिसका अर्थ होता है “चलीस” (40)। चलीस (40) पंक्तियों के पठन से मनुष्य की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और समस्त प्रकार की सुख-शान्ति, धन-संपति, और समृद्धि प्राप्त होती है।

Gayatri Chalisa in Hindi

॥ दोहा ॥
हीं श्रीं, क्लीं, मेधा, प्रभा, जीवन ज्योति प्रचण्ड ।
शांति, क्रांति, जागृति, प्रगति, रचना शक्ति अखण्ड ॥
जगत जननि, मंगल करनि, गायत्री सुखधाम ।
प्रणवों सावित्री, स्वधा, स्वाहा पूरन काम

॥ चालीसा ॥
भूर्भुवः स्वः ॐ युत जननी ।
गायत्री नित कलिमल दहनी ॥१॥

अक्षर चौबिस परम पुनीता ।
इनमें बसें शास्त्र, श्रुति, गीता ॥

शाश्वत सतोगुणी सतरुपा ।
सत्य सनातन सुधा अनूपा ॥

हंसारुढ़ सितम्बर धारी ।
स्वर्णकांति शुचि गगन बिहारी ॥४॥

पुस्तक पुष्प कमंडलु माला ।
शुभ्र वर्ण तनु नयन विशाला ॥

ध्यान धरत पुलकित हिय होई ।
सुख उपजत, दुःख दुरमति खोई ॥

कामधेनु तुम सुर तरु छाया ।
निराकार की अदभुत माया ॥

तुम्हरी शरण गहै जो कोई ।
तरै सकल संकट सों सोई ॥८॥

सरस्वती लक्ष्मी तुम काली ।
दिपै तुम्हारी ज्योति निराली ॥

तुम्हरी महिमा पारन पावें ।
जो शारद शत मुख गुण गावें ॥

चार वेद की मातु पुनीता ।
तुम ब्रहमाणी गौरी सीता ॥

महामंत्र जितने जग माहीं ।
कोऊ गायत्री सम नाहीं ॥१२॥

सुमिरत हिय में ज्ञान प्रकासै ।
आलस पाप अविघा नासै ॥

सृष्टि बीज जग जननि भवानी ।
काल रात्रि वरदा कल्यानी ॥

ब्रहमा विष्णु रुद्र सुर जेते ।
तुम सों पावें सुरता तेते ॥

तुम भक्तन की भक्त तुम्हारे ।
जननिहिं पुत्र प्राण ते प्यारे ॥१६॥

महिमा अपरम्पार तुम्हारी ।
जै जै जै त्रिपदा भय हारी ॥

पूरित सकल ज्ञान विज्ञाना ।
तुम सम अधिक न जग में आना ॥

तुमहिं जानि कछु रहै न शेषा ।
तुमहिं पाय कछु रहै न क्लेषा ॥

जानत तुमहिं, तुमहिं है जाई ।
पारस परसि कुधातु सुहाई ॥२०॥

तुम्हरी शक्ति दिपै सब ठाई ।
माता तुम सब ठौर समाई ॥

ग्रह नक्षत्र ब्रहमाण्ड घनेरे ।
सब गतिवान तुम्हारे प्रेरे ॥

सकलसृष्टि की प्राण विधाता ।
पालक पोषक नाशक त्राता ॥

मातेश्वरी दया व्रत धारी ।
तुम सन तरे पतकी भारी ॥२४॥

जापर कृपा तुम्हारी होई ।
तापर कृपा करें सब कोई ॥

मंद बुद्घि ते बुधि बल पावें ।
रोगी रोग रहित है जावें ॥

दारिद मिटै कटै सब पीरा ।
नाशै दुःख हरै भव भीरा ॥

गृह कलेश चित चिंता भारी ।
नासै गायत्री भय हारी ॥२८ ॥

संतिति हीन सुसंतति पावें ।
सुख संपत्ति युत मोद मनावें ॥

भूत पिशाच सबै भय खावें ।
यम के दूत निकट नहिं आवें ॥

जो सधवा सुमिरें चित लाई ।
अछत सुहाग सदा सुखदाई ॥

घर वर सुख प्रद लहैं कुमारी ।
विधवा रहें सत्य व्रत धारी ॥३२॥

जयति जयति जगदम्ब भवानी ।
तुम सम और दयालु न दानी ॥

जो सदगुरु सों दीक्षा पावें ।
सो साधन को सफल बनावें ॥

सुमिरन करें सुरुचि बड़भागी ।
लहैं मनोरथ गृही विरागी ॥

अष्ट सिद्घि नवनिधि की दाता ।
सब समर्थ गायत्री माता ॥३६॥

ऋषि, मुनि, यती, तपस्वी, जोगी ।
आरत, अर्थी, चिंतित, भोगी ॥

जो जो शरण तुम्हारी आवें ।
सो सो मन वांछित फल पावें ॥

बल, बुद्घि, विघा, शील स्वभाऊ ।
धन वैभव यश तेज उछाऊ ॥

सकल बढ़ें उपजे सुख नाना ।
जो यह पाठ करै धरि ध्याना ॥४०॥

॥ दोहा ॥
यह चालीसा भक्तियुत, पाठ करे जो कोय ।
तापर कृपा प्रसन्नता, गायत्री की होय ॥

गायत्री चालीसा में किस पर्वत से संबंधित पंक्ति है, और इसका महत्व क्या है?

पर्वत से संबंधित पंक्ति

‘गायत्री चालीसा’ में “मनोहर शुक” पर्वत से संबंधित पंक्ति है। इस पंक्ति में गायत्री माता को “मनोहर शुक” कहा जाता है, जो कि हिमालय पर्वत के एक प्रमुख स्‍थल है। ‘मनोहर शुक’ के संबंध में कहा जाता है कि इस पर्वत पर मानसिक, आध्‍मिक, और स्‍पिरिचुअल सुन्‍दरता की प्राप्‍ति होती है।

पंक्ति का महत्व

मनोहर शुक से संबंधित पंक्ति का महत्व इस प्रकार है कि यह पंक्ति गायत्री माता की महिमा और उनके स्‍थल की महत्‍ता को दर्शाती है। हिमालय पर्वत को सम्‍पूर्ण भारतीय संस्‍कृति में पवित्र माना जाता है, और ‘मनोहर शुक’ पर्वत के सम्‍बंध में कहा जाता है कि इस पर्वत पर समस्‍त सुन्‍दर, प्राकृतिक, और मनोहारी चीजें मिलती हैं। ‘मनोहर शुक’ से संबंधित पंक्ति के माध्‍यम से, ‘Gayatri Chalisa’ में हिमालय पर्वत के महिमा-मंदिर, सुन्‍दरता, और पवित्रता को बयां किया जाता है।

‘महेश’ से संबंधित पंक्ति ‘Gayatri Chalisa’ में कहाँ पर मिलती है?

‘महेश’ से संबंधित पंक्ति ‘Gayatri Chalisa’ में “महादेव गुरु” के रूप में मिलती है। इस पंक्ति में गायत्री माता को “महादेव गुरु” कहा जाता है, जो कि प्रसिद्ध हिन्‍दू भगवान शिव (महेश) के स्‍वरूप में प्रतिष्‍ठित हैं। ‘महादेव गुरु’ के संबंध में कहा जाता है कि उनकी स्‍पर्शनी से समस्‍त प्रकृति, समस्‍त प्राणी, और समस्‍त मनुष्‍यों को प्रकाश और उद्धार मिलता है।

‘Gayatri Chalisa’ में 40 पंक्तियों के समुह को ‘Chalisa’ कहते है, क्‍या आप जानते हैं कि इसमें संख्या 40 का क्‍या महत्व है?

40 पंक्तियों के समुह को ‘Chalisa’ कहने का मतलब है कि ‘Gayatri Chalisa’ में 40 पंक्तियाँ होती हैं। इसमें संख्या 40 का अपना विशेष महत्व होता है। संस्‍कृत में, “चलीस” (Chalis) शब्‍द 40 से संबंधित होता है, और “Chalisa” शब्‍द 40 परिभाषित करने के लिए प्रयोग होता है। ‘Gayatri Chalisa’ में 40 पंक्तियाँ होने से, इसकी प्रार्थना और मंत्रों की शक्ति और प्रभाविता में वृद्धि होती है। 40 पंक्तियाँ सम्‍पूर्णता, पूर्णता, और संपन्‍नता की प्रतीक होती हैं, जो ‘Gayatri Chalisa’ के माध्‍यम से प्राप्‍त होती हैं।

 

गायत्री मंत्र का बीज मंत्र क्या है?

गायत्री मंत्र का जाप मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए भी अत्यंत प्रभावी माना जाता है। अगर नौकरी या बिजनेस में किसी भी प्रकार की समस्या हो रही हो तो गायत्री मंत्र का जाप बहुत मददगार साबित हो सकता है। “ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।”

गायत्री मंत्र कैसे कहते हैं?

आद्यात्मिक और विद्युतीय महत्त्व के साथ भारतीय धार्मिक मंत्र ॐ भूः, ॐ भुवः, ॐ स्वः, ॐ महः, ॐ जनः, ॐ तपः, ॐ सत्यम्। हम विरासत के देवता सविता (सूर्य) की ओर से सुन्दरता, ज्ञान और प्रकाश की प्रार्थना करते हैं, हमारी बुद्धि को प्रेरित करते हैं।

गायत्री मंत्र की शक्ति क्या है?

गायत्री मंत्र को वेदों में प्राण, आयु, तेज, कीर्ति और धन का प्रतीक माना गया है। इसीलिए इसे महामंत्र कहा जाता है, जो शरीर की कई शक्तियों को जाग्रत करता है। श्री गणेश को सबसे पहले पूजा जाता है, इसलिए आपको उनके गायत्री मंत्र को जानने की आवश्यकता है।

गायत्री माता किसकी बेटी है?

संकल्प शक्ति चेतन सत्- संभव होने से ब्रह्मा की एक पुत्री है। परमाणु शक्ति स्थूल क्रियाशील एवं तम- संभव होने से ब्रह्मा की एक पत्नी है। इस तरह, गायत्री और सावित्री ब्रह्मा की पुत्री और पत्नी के रूप में प्रसिद्ध हुईं।

स्त्री गायत्री मंत्र क्या है?

गायत्री मंत्र Apple द्वारा बनाए गए iPhone के बारे में एक स्मार्टफोन है, जो एक कंप्यूटर, iPod, डिजिटल कैमरा और सेल्युलर फोन को एक ही डिवाइस में एकत्र करता है जिसमें एक टचस्क्रीन इंटरफेस होता है।

गायत्री मंत्र कैसे पढ़ना चाहिए?

सुबह के समय जब जाप करते हैं, तो पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठें। संध्या के समय पश्चिम दिशा की ओर मुख करके जाप करना उचित होता है। गायत्री मंत्र का जाप करने के लिए कोई भी योग्य है, लेकिन गायत्री मंत्र का जाप करते समय सात्विक भोजन लेना चाहिए।

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