Sai Chalisa in Hindi PDF-साईं चालीसा

Sai Chalisa

Sai Chalisa – परिचय

साईं चालीसा एक श्रद्धेय भक्ति रचना है जिसमें शिरडी साईं बाबा, एक श्रद्धेय आध्यात्मिक संत और करुणा, प्रेम और निस्वार्थ सेवा के अवतार को समर्पित चालीस छंद शामिल हैं। शिरडी साईं बाबा को उनकी शिक्षाओं, चमत्कारों और लोगों को आध्यात्मिक ज्ञान और आंतरिक शांति के मार्ग पर मार्गदर्शन करने में उनकी भूमिका के लिए दुनिया भर में लाखों लोगों द्वारा पूजा जाता है।

साईं चालीसा में साईं बाबा की शिक्षाओं का सार और उनके भक्तों पर उनके गहरे प्रभाव का वर्णन है। चालीसा के छंद एक दिव्य उपचारक, एक सार्वभौमिक शिक्षक और बिना शर्त प्रेम और अनुग्रह के स्रोत के रूप में साईं बाबा की विशेषताओं पर प्रकाश डालते हैं।

भक्तों का मानना ​​है कि भक्ति और ईमानदारी से साईं चालीसा का पाठ करने से आध्यात्मिक परिवर्तन, उपचार और आशीर्वाद मिल सकता है। चालीसा साईं बाबा की दिव्य उपस्थिति से जुड़ने और जीवन के विभिन्न पहलुओं में उनका मार्गदर्शन प्राप्त करने के माध्यम के रूप में कार्य करती है। साईं चालीसा उन लोगों के दिलों में एक विशेष स्थान रखती है जिन्होंने साईं बाबा की कृपा और ज्ञान का अनुभव किया है।

यह आराम, प्रेरणा और सांत्वना के स्रोत के रूप में कार्य करता है, भक्तों को करुणा, विनम्रता और भक्ति के साथ जीने के लिए मार्गदर्शन करता है। आध्यात्मिक सांत्वना और मार्गदर्शन चाहने वाली दुनिया में, साईं चालीसा एक श्रद्धेय निधि बनी हुई है, जो शिरडी साईं बाबा की शिक्षाओं और ऊर्जा से जुड़ने का एक तरीका प्रदान करती है। इसके छंदों के माध्यम से, भक्त अपनी श्रद्धा व्यक्त करते हैं और उनका आशीर्वाद मांगते हैं, जो प्रेम और निस्वार्थता की भावना का प्रतीक है जिसका उदाहरण साईं बाबा ने दिया था।

साईं चालीसा / Sai chalisa हिंदी भाषा में उपलब्ध

साईं चालीसा हिंदी में प्रकट होने का मतलब है कि यह प्रारंभ से ही हिन्दी भाषा में लिखी गई है। साईं चालीसा, सत्य साईं बाबा को समर्पित एक प्रमुख पौराणिक प्रार्थना है, जो कि प्रतिदिन सुनी/पढ़ी/गुने/पुन:प्रकर्ति करने से महत्वपूर्ण मानी जाती है।

हिन्दी में साइंस (Sai) को “समर्थ” कहते हैं, और “चलीसा” का मतलब होता है “40”। 40 पंक्तियों से मिलकर, समर्थ-चलीसा (Sai Chalisa) कहलाने वाले प्रमुख धार्मिक प्रार्थना के रूप में साईं चालीसा प्रस्तुत होती है।

साईं चालीसा के हिंदी में प्रतिलिपि कौन-कौन से स्रोतों से प्राप्त करें

आप साईं चालीसा को कई स्रोतों से हिन्दी में प्राप्त कर सकते हैं। इनमें से कुछ महत्वपूर्ण स्रोतों में शामिल हैं:

  1. किसी भी आराधना पुस्तक में, जहाँ पर “साईं” (Sai) या “समर्थ” (Samarth) के 40 पंक्ति/चलीसा (Chalisa) हो, वहाँ से साईं चालीसा को प्राप्त करें।
  2. इंटरनेट पर, हिन्दी में सुलभता से “साईं चालीसा” सर्च करें और प्रारंभिक परिणामों में से किसी एक को चुनें।
  3. आपके पास साईं बाबा के मंदिरों/आश्रमों में उपलब्ध पुस्तकालय हो सकती है, जहाँ से आप हिन्दी में साईं चालीसा प्राप्त कर सकते हैं।

हिंदी में साईं चालीसा पढने के फ़ायदे

हिन्दी में साईं चालीसा पढने के कई फ़ायदे हैं:

  • समर्थ-चलीसा (Sai Chalisa) को प्रतिदिन पुन:प्रकर्ति करने से, मनुष्य को मनो-मुक्ति, शुभता, समृद्धि, स्‍त्रोत, 6-8 धर्मिक महत्वपूर्ण प्रतीति/मुख्यतम प्रतीक/महत्वपूर्ण आदेश (symbol) के साथ-साथ, श्रद्धा, आनंद, संकल्‍प, और निरंतर प्राप्त हो सकते हैं।
  • साईं चालीसा पढने से मन को शांति मिलती है, मनोविज्ञानिक अध्‍ययन के मुताबिक सुनने/पढ़ने का प्रक्रिया मन को स्‍पष्‍ट/स्‍मृति-मुक्ति (clarity) करके, मन को “सुलेमान” (calm) करके, मन को “संकेत” (signals) करके, मन को “स्‍मृति” (memory) करके, मन को “प्रेषित” (sent) करके, और “मुहूर्‍त” (moment) – “संकल्‍प” (intention)/”महसूस” (feel) करके, मन को “दिशा” (direction) देती है।

साईं चालीसा में हिन्दू धर्म के महत्वपूर्ण प्रतीति/मुख्यतम प्रतीक/महत्वपूर्ण आदेश

साईं चालीसा के हिंदी में प्रतिलिपि कौन-कौन से स्रोतों से प्राप्त करें

साईं चालीसा को हिंदी में प्रतिलिपि बहुत से स्रोतों से प्राप्त किया जा सकता है। इनमें से कुछ मुख्य स्रोतों में शामिल हैं:

1. धार्मिक पुस्तकलय

आप अपने नजदीकी धार्मिक पुस्तकालय में जा कर हिंदी में साईं चालीसा की प्रतिलिपि प्राप्त कर सकते हैं। वहाँ पर आपको धर्म, संस्कृति, और संग्रहलय के अलावा, मनोहर, पुराण,  महाभारत,  रमण महर्षि,  पुस्तकालय,  आदि जैसी पुस्तकें भी मिलेंगी।

2. इंटरनेट साइट्स

हिंदी में साईं चालीसा के प्रतिलिपि को आप इंटरनेट साइट्स से भी प्राप्त कर सकते हैं। कुछ प्रमुख हिंदी वेबसाइटों पर आपको साईं चालीसा के प्रतिलिपि मिलेगा।

हिंदी में साईं चालीसा पढने के फ़ायदे

हिंदी में साईं चालीसा पढ़ने के कुछ महत्वपूर्ण  लाभ हैं:

1. मन को शान्ति

साईं चालीसा को हिंदी में पढ़ने से मन को शान्ति, सुकून,  तथा आनंद मिलता है। इसके पाठ से मन की चंचलता कम होती है और ध्यान स्थिर होता है।

2. श्रद्धा और विश्वास

हिंदी में साईं चालीसा को पढ़ने से हमें साईं बाबा में  अधिक  श्रद्धा,  प्रेम,  और  विश्वास  होता है।

साईं चालीसा में हिन्दू धर्म के महत्वपूर्ण प्रतीति/मुख्यतम प्रतीक/महत्वपूर्ण आदेश

साईं चालीसा में हिन्दू धर्म के कुछ महत्वपूर्ण प्रतीक, प्रतीति,  और महत्वपूर्ण आदेश हैं:

1. भक्ति

साईं चालीसा में हिन्दू धर्म की मुख्यतम प्रतीति है भक्ति। साईं बाबा के प्रति भक्ति का प्रदर्शन करने से हमें अपने मन,  शरीर,  और  आत्मा को पवित्र करने में सहायता मिलती है।

2. सेवा

साईं चालीसा में सेवा की प्रतीति होती है, जो हिन्दू धर्म के महत्वपूर्ण सिद्धांतों में से एक है। साईं बाबा को प्रसन्‍न करने के लिए, हमें समाजसेवा,  गरीबों,  महिलाओं,  और  बुजुर्गों की सेवा करनी चाहिए।

श्री साईं चालीसा हिंदी में प्रदान करने से, हमें अपने भक्तों को साईं बाबा की कृपा और आशीर्वाद प्राप्त करने का अवसर मिलता है। यह पुराणिक पाठ हमें संतुष्टि, ध्यान, और सकारात्मकता की प्रोत्साहन प्रदान करता है, जो हमें समस्याओं|

Sai Chalisa in Hindi

पहले साई के चरणों में, अपना शीश नमाऊं मैं !
कैसे शिरडी साई आए, सारा हाल सुनाऊं मैं !!
कौन है माता, पिता कौन है, ये न किसी ने भी जाना !
कहां जन्म साई ने धारा, प्रश्न पहेली रहा बना !!

कोई कहे अयोध्या के, ये रामचंद्र भगवान हैं !
कोई कहता साई बाबा, पवन पुत्र हनुमान हैं !!
कोई कहता मंगल मूर्ति, श्री गजानंद हैं साई !
कोई कहता गोकुल मोहन, देवकी नन्दन हैं साई !!

शंकर समझे भक्त कई तो, बाबा को भजते रहते !
कोई कह अवतार दत्त का, पूजा साई की करते !!
कुछ भी मानो उनको तुम, पर साई हैं सच्चे भगवान !
बड़े दयालु दीनबन्धु, कितनों को दिया जीवन दान !!

कई वर्ष पहले की घटना, तुम्हें सुनाऊंगा मैं बात !
किसी भाग्यशाली की, शिरडी में आई थी बारात !!
आया साथ उसी के था, बालक एक बहुत सुन्दर !
आया, आकर वहीं बस गया, पावन शिरडी किया नगर !!

कई दिनों तक भटकता, भिक्षा माँग उसने दर-दर !
और दिखाई ऐसी लीला, जग में जो हो गई अमर !!
जैसे-जैसे अमर उमर बढ़ी, बढ़ती ही वैसे गई शान !
घर-घर होने लगा नगर में, साई बाबा का गुणगान !!

दिग्-दिगन्त में लगा गूंजने, फिर तो साईंजी का नाम !
दीन-दुखी की रक्षा करना, यही रहा बाबा का काम !!
बाबा के चरणों में जाकर, जो कहता मैं हूं निर्धन !
दया उसी पर होती उनकी, खुल जाते दुःख के बंधन !!

कभी किसी ने मांगी भिक्षा, दो बाबा मुझको संतान !
एवं अस्तु तब कहकर साई, देते थे उसको वरदान !!
स्वयं दुःखी बाबा हो जाते, दीन-दुःखी जन का लख हाल !
अन्तःकरण श्री साई का, सागर जैसा रहा विशाल !!

भक्त एक मद्रासी आया, घर का बहुत ब़ड़ा धनवान !
माल खजाना बेहद उसका, केवल नहीं रही संतान !!
लगा मनाने साईनाथ को, बाबा मुझ पर दया करो !
झंझा से झंकृत नैया को, तुम्हीं मेरी पार करो !!

कुलदीपक के बिना अंधेरा, छाया हुआ घर में मेरे !
इसलिए आया हूँ बाबा, होकर शरणागत तेरे !!
कुलदीपक के अभाव में, व्यर्थ है दौलत की माया !
आज भिखारी बनकर बाबा, शरण तुम्हारी मैं आया !!

दे दो मुझको पुत्र-दान, मैं ऋणी रहूंगा जीवन भर !
और किसी की आशा न मुझको, सिर्फ भरोसा है तुम पर !!
अनुनय-विनय बहुत की उसने, चरणों में धर के शीश !
तब प्रसन्न होकर बाबा ने , दिया भक्त को यह आशीश !!

अल्ला भला करेगा तेरा, पुत्र जन्म हो तेरे घर !
कृपा रहेगी तुझ पर उसकी, और तेरे उस बालक पर !!
अब तक नहीं किसी ने पाया, साई की कृपा का पार !
पुत्र रत्न दे मद्रासी को, धन्य किया उसका संसार !!

तन-मन से जो भजे उसी का, जग में होता है उद्धार !
सांच को आंच नहीं हैं कोई, सदा झूठ की होती हार !!
मैं हूं सदा सहारे उसके, सदा रहूँगा उसका दास !
साई जैसा प्रभु मिला है, इतनी ही कम है क्या आस !!

मेरा भी दिन था एक ऐसा, मिलती नहीं मुझे रोटी !
तन पर कप़ड़ा दूर रहा था, शेष रही नन्हीं सी लंगोटी !!
सरिता सन्मुख होने पर भी, मैं प्यासा का प्यासा था !
दुर्दिन मेरा मेरे ऊपर, दावाग्नी बरसाता था !!

धरती के अतिरिक्त जगत में, मेरा कुछ अवलम्ब न था !
बना भिखारी मैं दुनिया में, दर-दर ठोकर खाता था !!
ऐसे में एक मित्र मिला जो, परम भक्त साई का था !
जंजालों से मुक्त मगर, जगती में वह भी मुझसा था !!

बाबा के दर्शन की खातिर, मिल दोनों ने किया विचार !
साई जैसे दया मूर्ति के, दर्शन को हो गए तैयार !!
पावन शिरडी नगर में जाकर, देख मतवाली मूरति !
धन्य जन्म हो गया कि हमने, जब देखी साई की सूरति !!

जब से किए हैं दर्शन हमने, दुःख सारा काफूर हो गया !
संकट सारे मिटै और, विपदाओं का अन्त हो गया !!
मान और सम्मान मिला, भिक्षा में हमको बाबा से !
प्रतिबिम्‍बित हो उठे जगत में, हम साई की आभा से !!

बाबा ने सन्मान दिया है, मान दिया इस जीवन में !
इसका ही संबल ले मैं, हंसता जाऊंगा जीवन में !!
साई की लीला का मेरे, मन पर ऐसा असर हुआ !
लगता जगती के कण-कण में, जैसे हो वह भरा हुआ !!

‘काशीराम’ बाबा का भक्त, शिरडी में रहता था !
मैं साई का साई मेरा, वह दुनिया से कहता था !!
सीकर स्वयं वस्त्र बेचता, ग्राम-नगर बाजारों में !
झंकृत उसकी हृदय तंत्री थी, साई की झंकारों में !!

स्तब्ध निशा थी, थे सोय, रजनी आंचल में चाँद सितारे !
नहीं सूझता रहा हाथ को हाथ तिमिर के मारे !!
वस्त्र बेचकर लौट रहा था, हाय ! हाट से काशी !
विचित्र ब़ड़ा संयोग कि उस दिन, आता था एकाकी !!

घेर राह में ख़ड़े हो गए, उसे कुटिल अन्यायी !
मारो काटो लूटो इसकी ही, ध्वनि प़ड़ी सुनाई !!
लूट पीटकर उसे वहाँ से कुटिल गए चम्पत हो !
आघातों में मर्माहत हो, उसने दी संज्ञा खो !!

बहुत देर तक प़ड़ा रह वह, वहीं उसी हालत में !
जाने कब कुछ होश हो उठा, वहीं उसकी पलक में !!
अनजाने ही उसके मुंह से, निकल प़ड़ा था साई !
जिसकी प्रतिध्वनि शिरडी में, बाबा को प़ड़ी सुनाई !!

क्षुब्ध हो उठा मानस उनका, बाबा गए विकल हो !
लगता जैसे घटना सारी, घटी उन्हीं के सन्मुख हो !!
उन्मादी से इ़धर-उ़धर तब, बाबा लेगे भटकने !
सन्मुख चीजें जो भी आई, उनको लगने पटकने !!

और धधकते अंगारों में, बाबा ने अपना कर डाला !
हुए सशंकित सभी वहाँ, लख ताण्डवनृत्य निराला !!
समझ गए सब लोग, कि कोई भक्त प़ड़ा संकट में !
क्षुभित ख़ड़े थे सभी वहाँ, पर प़ड़े हुए विस्मय में !!

उसे बचाने की ही खातिर, बाबा आज विकल है !
उसकी ही पी़ड़ा से पीडित, उनकी अन्तःस्थल है !!
इतने में ही विविध ने अपनी, विचित्रता दिखलाई !
लख कर जिसको जनता की, श्रद्धा सरिता लहराई !!

लेकर संज्ञाहीन भक्त को, गा़ड़ी एक वहाँ आई !
सन्मुख अपने देख भक्त को, साई की आंखें भर आई !!
शांत, धीर, गंभीर, सिन्धु सा, बाबा का अन्तःस्थल !
आज न जाने क्यों रह-रहकर, हो जाता था चंचल !!

आज दया की मूर्ति स्वयं था, बना हुआ उपचारी !
और भक्त के लिए आज था, देव बना प्रतिहारी !!
आज भक्ति की विषम परीक्षा में, सफल हुआ था काशी !
उसके ही दर्शन की खातिर थे, उम़ड़े नगर-निवासी !!

जब भी और जहां भी कोई, भक्त प़ड़े संकट में !
उसकी रक्षा करने बाबा, आते हैं पलभर में !!
युग-युग का है सत्य यह, नहीं कोई नई कहानी !
आपतग्रस्त भक्त जब होता, जाते खुद अन्तर्यामी !!

भेद-भाव से परे पुजारी, मानवता के थे साई !
जितने प्यारे हिन्दू-मुस्लिम, उतने ही थे सिक्ख ईसाई !!
भेद-भाव मन्दिर-मस्जिद का, तोड़-फोड़ बाबा ने डाला !
राह रहीम सभी उनके थे, कृष्ण करीम अल्लाताला !!

घण्टे की प्रतिध्वनि से गूंजा, मस्जिद का कोना-कोना !
मिले परस्पर हिन्दू-मुस्लिम, प्यार बढ़ा दिन-दिन दूना !!
चमत्कार था कितना सुन्दर, परिचय इस काया ने दी !
और नीम कडुवाहट में भी, मिठास बाबा ने भर दी !!

सब को स्नेह दिया साई ने, सबको संतुल प्यार किया !
जो कुछ जिसने भी चाहा, बाबा ने उसको वही दिया !!
ऐसे स्नेहशील भाजन का, नाम सदा जो जपा करे !
पर्वत जैसा दुःख न क्यों हो, पलभर में वह दूर टरे !!

साई जैसा दाता हमने, अरे नहीं देखा कोई !
जिसके केवल दर्शन से ही, सारी विपदा दूर गई !!
तन में साई, मन में साई, साई-साई भजा करो !
अपने तन की सुधि-बुधि खोकर, सुधि उसकी तुम किया करो !!

जब तू अपनी सुधि तज, बाबा की सुधि किया करेगा !
और रात-दिन बाबा-बाबा, ही तू रटा करेगा !!
तो बाबा को अरे ! विवश हो, सुधि तेरी लेनी ही होगी !
तेरी हर इच्छा बाबा को पूरी ही करनी होगी !!

जंगल, जगंल भटक न पागल, और ढूंढ़ने बाबा को !
एक जगह केवल शिरडी में, तू पाएगा बाबा को !!
धन्य जगत में प्राणी है वह, जिसने बाबा को पाया !
दुःख में, सुख में प्रहर आठ हो, साई का ही गुण गाया !!

गिरे संकटों के पर्वत, चाहे बिजली ही टूट पड़े !
साई का ले नाम सदा तुम, सन्मुख सब के रहो अड़े !!
इस बूढ़े की सुन करामत, तुम हो जाओगे हैरान !
दंग रह गए सुनकर जिसको, जाने कितने चतुर सुजान !!

एक बार शिरडी में साधु, ढ़ोंगी था कोई आया !
भोली-भाली नगर-निवासी, जनता को था भरमाया !!
जड़ी-बूटियां उन्हें दिखाकर, करने लगा वह भाषण !
कहने लगा सुनो श्रोतागण, घर मेरा है वृन्दावन !!

औषधि मेरे पास एक है, और अजब इसमें शक्ति !
इसके सेवन करने से ही, हो जाती दुःख से मुक्ति !!
अगर मुक्त होना चाहो, तुम संकट से बीमारी से !
तो है मेरा नम्र निवेदन, हर नर से, हर नारी से !!

लो खरीद तुम इसको, इसकी सेवन विधियां हैं न्यारी !
यद्यपि तुच्छ वस्तु है यह, गुण उसके हैं अति भारी !!
जो है संतति हीन यहां यदि, मेरी औषधि को खाए !
पुत्र-रत्न हो प्राप्त, अरे वह मुंह मांगा फल पाए !!

औषधि मेरी जो न खरीदे, जीवन भर पछताएगा !
मुझ जैसा प्राणी शायद ही, अरे यहां आ पाएगा !!
दुनिया दो दिनों का मेला है, मौज शौक तुम भी कर लो !
अगर इससे मिलता है, सब कुछ, तुम भी इसको ले लो !!

हैरानी बढ़ती जनता की, लख इसकी कारस्तानी !
प्रमुदित वह भी मन- ही-मन था, लख लोगों की नादानी !!
खबर सुनाने बाबा को यह, गया दौड़कर सेवक एक !
सुनकर भृकुटी तनी और, विस्मरण हो गया सभी विवेक !!

हुक्म दिया सेवक को, सत्वर पकड़ दुष्ट को लाओ !
या शिरडी की सीमा से, कपटी को दूर भगाओ !!
मेरे रहते भोली-भाली, शिरडी की जनता को !
कौन नीच ऐसा जो, साहस करता है छलने को !!

पलभर में ऐसे ढोंगी, कपटी नीच लुटेरे को !
महानाश के महागर्त में पहुँचा, दूँ जीवन भर को !!
तनिक मिला आभास मदारी, क्रूर, कुटिल अन्यायी को !
काल नाचता है अब सिर पर, गुस्सा आया साई को !!

पलभर में सब खेल बंद कर, भागा सिर पर रखकर पैर !
सोच रहा था मन ही मन, भगवान नहीं है अब खैर !!
सच है साई जैसा दानी, मिल न सकेगा जग में !
अंश ईश का साई बाबा, उन्हें न कुछ भी मुश्किल जग में !!

स्नेह, शील, सौजन्य आदि का, आभूषण धारण कर !
बढ़ता इस दुनिया में जो भी, मानव सेवा के पथ पर !!
वही जीत लेता है जगती के, जन जन का अन्तःस्थल !
उसकी एक उदासी ही, जग को कर देती है विह्वल !!

जब-जब जग में भार पाप का, बढ़-बढ़ ही जाता है !
उसे मिटाने की ही खातिर, अवतारी ही आता है !!
पाप और अन्याय सभी कुछ, इस जगती का हर के !
दूर भगा देता दुनिया के, दानव को क्षण भर के !!

स्नेह सुधा की धार बरसने, लगती है इस दुनिया में !
गले परस्पर मिलने लगते, हैं जन-जन आपस में !!
ऐसे अवतारी साई, मृत्युलोक में आकर !
समता का यह पाठ पढ़ाया, सबको अपना आप मिटाकर !!

नाम द्वारका मस्जिद का, रखा शिरडी में साई ने !
दाप, ताप, संताप मिटाया, जो कुछ आया साई ने !!
सदा याद में मस्त राम की, बैठे रहते थे साई !
पहर आठ ही राम नाम को, भजते रहते थे साई !!

सूखी-रूखी ताजी बासी, चाहे या होवे पकवान !
सौदा प्यार के भूखे साई की, खातिर थे सभी समान !!
स्नेह और श्रद्धा से अपनी, जन जो कुछ दे जाते थे !
बड़े चाव से उस भोजन को, बाबा पावन करते थे !!

कभी-कभी मन बहलाने को, बाबा बाग में जाते थे !
प्रमुदित मन में निरख प्रकृति, छटा को वे होते थे !!
रंग-बिरंगे पुष्प बाग के, मंद-मंद हिल-डुल करके !
बीहड़ वीराने मन में भी स्नेह सलिल भर जाते थे !!

ऐसी समुधुर बेला में भी, दुख आपात, विपदा के मारे !
अपने मन की व्यथा सुनाने, जन रहते बाबा को घेरे !!
सुनकर जिनकी करूणकथा को, नयन कमल भर आते थे !
दे विभूति हर व्यथा, शांति, उनके उर में भर देते थे !!

जाने क्या अद्भुत शिक्त, उस विभूति में होती थी !
जो धारण करते मस्तक पर, दुःख सारा हर लेती थी !!
धन्य मनुज वे साक्षात् दर्शन, जो बाबा साई के पाए !
धन्य कमल कर उनके जिनसे, चरण-कमल वे परसाए !!

काश निर्भय तुमको भी, साक्षात् साई मिल जाता !
वर्षों से उजड़ा चमन अपना, फिर से आज खिल जाता !!
गर पकड़ता मैं चरण श्री के, नहीं छोड़ता उम्रभर !
मना लेता मैं जरूर उनको, गर रूठते साई मुझ पर !!

 

 

READ MORE ; Shani Chalisa in Hindi PDF- शनि चालीसा

https://en.wikipedia.org/wiki/Sai_Baba_of_Shirdi

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *