
laxmi ji ki aarti / लक्ष्मी जी की आरती हिंदी भाषा में
लक्ष्मी जी की आरती/laxmi ji ki aarti हिंदू धर्म में प्रसिद्ध है और इसे हमेशा सुंदर संगीत के साथ प्रस्तुत किया जाता है. यह आरती माता लक्ष्मी को समर्पित होती है, जो समृद्धि, सौभाग्य, समृद्धि, सुन्दरता, समृद्धि, प्रेम, प्रसन्नता, समृद्धि, प्रेम, प्रसन्नता, समृद्धि, प्रेम के प्रतीक माने जाते हैं. लक्ष्मी जी की आरती में विशेष मंत्रों का प्रयोग किया जाता है, जो माता लक्ष्मी के प्रसन्न होने के लिए संचार करने में सहायता करते हैं. इसके साथ ही, संगीतिक संग्रह, सुनावट, अलंकार, etc. का प्रयोग किया जाता है !
laxmi ji ki aarti / लक्ष्मी जी की आरती और प्रस्तुति
आरती/laxmi ji ki aarti हिन्दू धार्मिक प्रथाओं में एक महत्वपूर्ण कार्य है जो भक्ति और पूजा का महसूस कराता है। आरती को समय-समय पर, सामान्यत: सुबह और शाम के समय, मंदिरों, मंदिरों, घरों, गलियों, पुलिस स्टेशनों, हस्पतालों, स्कूलों, कॉलेजों, ऑफिसेस, etc. में प्रस्तुत किया जाता है।
laxmi ji ki aarti / लक्ष्मी जी की आरती और प्रसन्नता
प्रसन्नता के समय प्रकाशित होने वाली ‘प्रसन्नता’ ‘प्रसन्न’ (Prasanna) ‘प्र’ (Pra) + ‘सन्न’ (Sanna) शब्दों का संकटित रूप है। प्रसन्नता (Prasannata) शब्द के अर्थ में सुख, समृद्धि, प्रसन्नता, etc. की भावना होती है।
विशेष मंत्रों का प्रयोग किया जाता है?
हिन्दू आरती / laxmi ji ki aarti में विशेष मंत्रों का प्रयोग किया जाता है, जो प्राचीन समय से ही प्रचलित हैं। इन मंत्रों के पाठ से मानसिक, आत्मिक, और भौतिक सुक्ष्म-परिवर्तन होते हैं, जो साधक की प्रार्थना, मेधावी, and ‘पुरुष’ (Purusha) ‘पु’ (Pu) + ‘रु’ (Ru) + ‘ष’ (Sha) = ‘पुरुष’ के प्रति भक्ति को बढ़ाते हैं।
मंत्रों का महत्व
ये मंत्र आरती / laxmi ji ki aarti के दौरान सुनाए जाते हैं, जिनसे प्रशंसा, स्तुति, and प्रार्थना की भावना सुप्रभात (Suprabhat), सुख (Sukh), and ‘प्र’ (Pra) + ‘सन्न’ (Sanna) = ‘प्रसन्न’ (Prasanna) ‘प्रसन्न’ (Prasanna) ‘प्र’ (Pra) + ‘सन्न’ (Sanna) = ‘प्रसन्न’ (Prasanna), i.e., happiness, contentment, and satisfaction को प्राप्त किया जाता है।
संगीतिक संकलन, सुनावट, अलंकार के प्रयोग
laxmi ji ki aarti/ आरती में संगीतिक संकलन, सुनावट, and अलंकारों का प्रयोग किया जाता है, जो प्राचीन संस्कृति में विशेष महत्वपूर्ण हैं। इनके माध्यम से आरती को सुंदर, सुरीला, and प्रभावशाली बनाया जाता है, जिससे प्रतिष्ठा (Pratishtha), ‘प्र’ (Pra) + ‘तिष्ठ’ (Tishtha) = ‘प्रतिष्ठ’ (Pratishtha), i.e., respect and honor की भावना प्रकट होती है।
संकलन, सुनावट, and अलंकार
संकलन (Sankalan), सुनावट (Sunavat), and अलंकार (Alankar) हिन्दी संस्कृति में महत्वपूर्ण कला-प्रमुख हैं, जो संस्कृति के प्रमुख हिस्से में सम्मिलित होते हैं। इनके माध्यम से आरती को संगीतिक और साहित्यिक रूप में प्रस्तुत किया जाता है, जो भक्ति, समर्पण, and ‘स’ (Sa) + ‘ह’ (Ha) + ‘ि’ (I) + ‘त्य’ (Ty) = ‘सहित्य’ (Sahitya), i.e., devotion and dedication की अद्वितीयता को प्रकट करता है।
प्रसन्नता की आशा-प्रार्थना
हिन्दू आरती/laxmi ji ki aarti में प्रसन्नता की आशा-प्रार्थना की जाती है, जो संकल्प/समर्पण-भावना के पश्चात् ‘प्रसन्न’ (Prasanna) ‘प्रसन्न’ (Prasanna) ‘प्र’ (Pra) + ‘सन्न’ (Sanna) = ‘प्रसन्न’ (Prasanna), i.e., happiness and contentment की प्राप्ति के लिए की जाती है। इस प्रार्थना में भक्त संपूर्ण समर्पण, निष्कामता, and ‘पु’ (Pu) + ‘रु’ (Ru) + ‘ष’ (Sha) = ‘पुरुष’ (Purusha), i.e., the Supreme Being के प्रति अपनी समस्त क्रियाओं को समर्पित करता है।
प्रसन्नता की महिमा
प्रसन्नता (Prasannata) हमेशा एक प्राकृतिक और मानसिक स्थिति होती है, जो संकल्प/समर्पण-भावना के पश्चात् प्रकट होती है। यह महिमा (Mahima) ‘महि’ (Maha) + ‘मा’ (Ma), i.e., greatness and glory के साथ प्रकट होती है, laxmi ji ki aarti संपूर्ण मानव-जीवन को सुख, शांति, and ‘प्र’ (Pra) + ‘सन्न’ (Sanna) = ‘प्रसन्न’ (Prasanna), i.e., happiness and contentment से परिपूर्ण बनाती है।
समर्पिति/laxmi ji ki aarti प्रार्थना-प्रस्तुति के पश्चात् ‘प्रसन्नता’ की आशा-प्रार्थना
laxmi ji ki aarti समर्पिति/प्रार्थना-प्रस्तुति के पश्चात् ‘प्रसन्नता’ (Prasannata) ‘प्रसन्न’ (Prasanna) ‘प्र’ (Pra) + ‘सन्न’ (Sanna) = ‘प्रसन्न’ (Prasanna), i.e., happiness and contentment की आशा-प्रार्थना की जाती है। इस प्रार्थना में भक्त संकल्प/समर्पण-भाव से पुरुषोत्तम, i.e., the Supreme Being के प्रति अपनी समस्त क्रियाओं को समर्पित करता है, और प्रसन्नता (Prasannata) ‘प्र’ (Pra) + ‘सन्न’ (Sanna) = ‘प्रसन्न’ (Prasanna), i.e., happiness and contentment की प्राप्ति की आशा रखता है।
आशा-प्रार्थना
इस / laxmi ji ki aarti आशा-प्रार्थना में भक्त संकल्प/समर्पण-भाव से पुरुषोत्तम, i.e., the Supreme Being के प्रति अपनी समस्त क्रियाओं को समर्पित करता है !
विशेष संकल्प/समर्पण-भावना
संकल्प की महत्ता
संकल्प एक शक्तिशाली माध्यम है जो हमें अपने लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए प्रेरित करता है। संकल्प के माध्यम से हम अपने मन को सुचारू और सुसंगत ढंग से प्रबुद्ध बना सकते हैं, जिससे हमें प्रतिस्पर्धा, कठिनाइयों, और परेशानियों का सामना करने में मदद मिलती है।
संकल्प-प्रमुखता
संकल्प-प्रमुखता एक महत्वपूर्ण सामरिक प्राथमिकता है, जो हमें सही मार्ग पर चलने, अपने लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए समय, मेहनत, और संसाधनों का सही उपयोग करने में मदद करती है। संकल्प-प्रमुखता हमें निरंतर प्रेरित करती है और हमारे जीवन में संतुलन, सफलता, और सुख-शांति का मार्ग प्रशस्त करती है।
- संकल्प-प्रमुखता हमें अपने मन को सुसंगत ढंग से प्रबुद्ध बनाने में मदद करती है।
- संकल्प-प्रमुखता हमें सही मार्ग पर चलने, समस्याओं का सामना करने, और प्रतिस्पर्धा में पहले से आगे बढ़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
- संकल्प-प्रमुखता हमें संतुलन, सफलता, और सुख-शांति के प्राप्ति में मदद करती है।
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laxmi ji ki aarti / लक्ष्मी जी की आरती हिंदी भाषा में
नमस्तुभ्यं सुरेश्वरि ।
हरि प्रिये नमस्तुभ्यं,
नमस्तुभ्यं दयानिधे ॥पद्मालये नमस्तुभ्यं,
नमस्तुभ्यं च सर्वदे ।
सर्वभूत हितार्थाय,
वसु सृष्टिं सदा कुरुं ॥ॐ जय लक्ष्मी माता,
मैया जय लक्ष्मी माता ।
तुमको निसदिन सेवत,
हर विष्णु विधाता ॥
उमा, रमा, ब्रम्हाणी,
तुम ही जग माता ।
सूर्य चद्रंमा ध्यावत,
नारद ऋषि गाता ॥
॥ॐ जय लक्ष्मी माता…॥
दुर्गा रुप निरंजनि,
सुख-संपत्ति दाता ।
जो कोई तुमको ध्याता,
ऋद्धि-सिद्धि धन पाता ॥
॥ॐ जय लक्ष्मी माता…॥
तुम ही पाताल निवासनी,
तुम ही शुभदाता ।
कर्म-प्रभाव-प्रकाशनी,
भव निधि की त्राता ॥
॥ॐ जय लक्ष्मी माता…॥
जिस घर तुम रहती हो,
ताँहि में हैं सद्गुण आता ।
सब सभंव हो जाता,
मन नहीं घबराता ॥
॥ॐ जय लक्ष्मी माता…॥
तुम बिन यज्ञ ना होता,
वस्त्र न कोई पाता ।
खान पान का वैभव,
सब तुमसे आता ॥
॥ॐ जय लक्ष्मी माता…॥
शुभ गुण मंदिर सुंदर,
क्षीरोदधि जाता ।
रत्न चतुर्दश तुम बिन,
कोई नहीं पाता ॥
॥ॐ जय लक्ष्मी माता…॥
महालक्ष्मी जी की आरती,
जो कोई नर गाता ।
उँर आंनद समाता,
पाप उतर जाता ॥
॥ॐ जय लक्ष्मी माता…॥
ॐ जय लक्ष्मी माता,
मैया जय लक्ष्मी माता ।
तुमको निसदिन सेवत,
हर विष्णु विधाता ॥