
शिवजी की आरती / Shivji Ki Aarti के बारे में संक्षेप में बताएं
Shivji Ki Aarti / शिवजी की आरती भगवान शिव को समर्पित एक प्रमुख पूजा प्रक्रिया है। यह आरती, प्राचीन समय से ही मनाई जा रही है और हिंदू धर्म के प्रमुख पुस्तकों में संकलित है। इसका महत्वपूर्ण स्थान हिंदुस्थान में है, कहा जाता है कि ‘हर हर महादेव’ के पुकार से हमेशा ‘Shivji Ki Aarti’ प्रारंभ होती है।इस Shivji Ki Aarti को प्रतिदिन प्रात:काल (सुप्रभात) और संध्या (सन्ध्या) के समय पढ़ने का महत्वपूर्ण समय माना जाता है। इसके अलावा, शिवरात्रि के दिन और महाशिवरात्रि के पश्चात्, सभी मंदिरों में ‘Shivji Ki Aarti’ की प्रतिष्ठा की जाती है।
शिवजी की आरती / Shivji Ki Aarti को पढ़ने का सटीक समय क्या होता है?
Shivji Ki Aarti / शिवजी की आरती शिवजी की आरती को प्रतिदिन प्रात:काल (सुप्रभात) और संध्या (सन्ध्या) के समय पढ़ने का सर्वोत्तम समय माना जाता है। सुप्रभात में इसे पढने से हमें उत्सुकता, सुकून, और प्रसन्नता मिलती है, जो हमें पूरे दिन में सहन-शक्ति प्रदान करती है।संध्या के समय इसे पढ़ने से हमें शांति, स्थिरता, और मनोभाव प्राप्त होता है, जो हमें रात्रि को आरामदायक सोने की सुविधा प्रदान करता है।
Shivji Ki Aarti / शिवजी की आरती में कौन-कौन से मंत्र प्रयोग होते हैं?
‘Shivji Ki Aarti’ में कुछ महत्वपूर्ण मंत्र प्रयुक्त होते हैं, जिनमें से कुछ प्रमुख मंत्र निम्नलिखित हैं:
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ॐ जय शिव ओंकारा: यह मंत्र ‘Shivji Ki Aarti’ की प्रारंभिक पंक्ति है, जो भगवान शिव की महिमा का समर्थन करता है.
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सुप्रभात दर्शन: इस मंत्र के माध्यम से, भक्त भगवान शिव की पूजा करते हैं और उनसे प्रार्थना करते हैं कि वह सबको सुख-शांति प्रदान करें.
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मंगलम्: यह मंत्र ‘Shivji Ki Aarti’ की समाप्ति पंक्ति है, जो भक्त की मंगलकामना करता है.
इस आरती को पाठ करने से पहले, क्या-क्या प्रसाद कि अपेक्षित होता है?
‘Shivji Ki Aarti’ को पढ़ने से पहले, मुख्यत: सुप्रभात (प्रात:काल) में, भक्तों की समुचित पूजा-पाठ में होने वाली मिठाई, फल, पुष्प, और दूप की अर्चना की जाती है। संध्या (सन्ध्या) में, भक्तों की प्रारंभिक पूजा-पाठ में होने वाली पत्र, फल, पुष्प, और दूप की अर्चना की जाती है।
शिवजी की आरती में प्रयुक्त मुख्य संगीतकार, संप्रदाय, और समुदायिक महत्व क्या है?
‘Shivji Ki Aarti’ को प्रमुखत: पं. ‘Rambhau Bhatt Joshi’ (Hindi) और ‘Sant Tulsidas’ (Awadhi) ने समर्पित किया है। हिन्दू संस्कृति में, ‘Shivji Ki Aarti’ महत्म्प्राप्ति दिलाती है। शिवजी को समर्पित इस पूजा-प्रक्रिया के माध्यम से, भक्तों को संयम, संतुलन, और आत्म-निर्भरता प्राप्त होती है।
19वीं सदी में ‘Shivji Ki Aarti’ पर आधारित कोई प्रमुख ग्रंथ सामग्री मिलती है?
19वीं सदी में ‘Shivji Ki Aarti’ पर आधारित कुछ प्रमुख ग्रंथ सामग्री में ‘Shiv Chalisa’, ‘Shiv Tandav Stotram’, ‘Shiv Mahimna Stotram’, ‘Shiv Panchakshar Stotram’ और ‘Rudrashtakam’ हैं। हालांकि, इनमें से कोई-कोई ‘Shivji Ki Aarti’ के पहले-पहले पंक्ति का हस्तलिखित रूप भी मिलता है। ये सामग्री प्रमुखत: ‘Shiv Puran’, ‘Shiv Mahapuran’, ‘Rudra Samhita’, ‘Linga Puran’, और ‘Skand Puran’ में मिलती हैं, जो कि हिन्दू धर्म के प्रमुख पुस्तकों में संकलित हैं।
शिवजी की आरती / Shivji Ki Aarti क्या है?
भगवान शिव देवों के देव हैं और शिव जी बहुत भोले भी हैं इसलिए शिव को प्रसन्न करना बहुत आसान है। शिव संहारक के देवता हैं लेकिन शिव मानवता के भी देवता हैं। यदि आप शिव आरती /Shivji Ki Aarti करने में सक्षम हैं तो शिव आपकी सदैव बुरी ऊर्जा और बुरे लोगों से रक्षा करेंगे। शिव बहुत कठिन स्थान पर रहे लेकिन शिव सबसे सरल देवता हैं।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/shivtaandav
Shivji Ki Aarti/शिवजी की आरती
ॐ जय शिव ओंकारा,
स्वामी जय शिव ओंकारा।
ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव,
अर्द्धांगी धारा ॥
ॐ जय शिव ओंकारा…॥
एकानन चतुरानन
पंचानन राजे ।
हंसासन गरूड़ासन
वृषवाहन साजे ॥
ॐ जय शिव ओंकारा…॥
दो भुज चार चतुर्भुज
दसभुज अति सोहे ।
त्रिगुण रूप निरखते
त्रिभुवन जन मोहे ॥
ॐ जय शिव ओंकारा…॥
अक्षमाला वनमाला,
मुण्डमाला धारी ।
चंदन मृगमद सोहै,
भाले शशिधारी ॥
ॐ जय शिव ओंकारा…॥
श्वेताम्बर पीताम्बर
बाघम्बर अंगे ।
सनकादिक गरुणादिक
भूतादिक संगे ॥
ॐ जय शिव ओंकारा…॥
कर के मध्य कमंडल
चक्र त्रिशूलधारी ।
सुखकारी दुखहारी
जगपालन कारी ॥
ॐ जय शिव ओंकारा…॥
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव
जानत अविवेका ।
प्रणवाक्षर में शोभित
ये तीनों एका ॥
ॐ जय शिव ओंकारा…॥
त्रिगुणस्वामी जी की आरति
जो कोइ नर गावे ।
कहत शिवानंद स्वामी
सुख संपति पावे ॥
ॐ जय शिव ओंकारा…॥
लक्ष्मी व सावित्री
पार्वती संगा ।
पार्वती अर्द्धांगी,
शिवलहरी गंगा ॥
ॐ जय शिव ओंकारा…॥
पर्वत सोहैं पार्वती,
शंकर कैलासा ।
भांग धतूर का भोजन,
भस्मी में वासा ॥
ॐ जय शिव ओंकारा…॥
जटा में गंग बहत है,
गल मुण्डन माला ।
शेष नाग लिपटावत,
ओढ़त मृगछाला ॥
जय शिव ओंकारा…॥
काशी में विराजे विश्वनाथ,
नंदी ब्रह्मचारी ।
नित उठ दर्शन पावत,
महिमा अति भारी ॥
ॐ जय शिव ओंकारा…॥
ॐ जय शिव ओंकारा,
स्वामी जय शिव ओंकारा।
ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव,
अर्द्धांगी धारा ॥